"एक लड़की हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहनी चाहिए, शादी के बाद पति उसका संरक्षक होना चाहिए, पति की मौत के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए, किसी भी स्थिति में एक महिला आज़ाद नहीं हो सकती."
मनुस्मृति के पांचवें अध्याय के 148वें श्लोक में ये बात लिखी है. ये महिलाओं के बारे में मनुस्मृति की राय साफ़ तौर पर बताती है.
मनुस्मृति में दलितों और महिलाओं के बारे में कई ऐसे श्लोक हैं जिनकी वजह से अक्सर विवादों का जन्म होता है.
पिछले दिनों महाराष्ट्र के राजनेता छगन भुजबल को अज्ञात व्यक्ति का पत्र मिला जिसमें लिखा था, "मनुस्मृति के बारे में मत बोलो नहीं तो तुम्हारा दाभोलकर जैसा हाल होगा."
बीबीसी मराठी सेवा से बात करते हुए भुजबल ने कहा, "मैं इन पत्रों को गंभीरता से नहीं लेता हूं. मैं ऐसी धमकियों की वजह से अपना काम बंद करने नहीं जा रहा हूं. बाबा साहेब आंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाकर इस देश को संविधान दिया है जो कि सभी लोगों के बराबरी का अधिकार देता है. अगर मनुस्मृति उन विचारों को वापस लेकर आ रही है जिनकी वजह से हमें हज़ारों सालों तक शोषण झेलना पड़ा तो हम मनुस्मृति को एक बार फिर जलाएंगे. हम इसकी आलोचना करेंगे. मैं किसी से नहीं डरता हूं."
स्टोरी: तुषार कुलकर्णी, बीबीसी मराठी संवाददाता
आवाज़: दिलनवाज़ पाशा
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